Saturday, May 23, 2020

युवा मानसिक गुलामी का शिकार होने से बचें - राजेश बिस्सा


युवा मानसिक गुलामी का शिकार होने से बचें
                                                                                          
प्रिय युवाओं
सादर वंदे,

युवा अर्थात जवाबदारी। युवाओं को जवाबदारी का प्रतीक ऐसे ही नहीं माना गया है। अपार संभावनाओं का स्वामी युवा हर असंभव को संभव करने की शक्ति रखता है।

संत कबीर दास जी का एक दोहा है

ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग।।

 ज्यों तिल माहि तेल है” अर्थात जिस प्रकार छोटे से तिल के दाने में तेल होता है। उसी प्रकार  युवा में असीम संभावनाओं का भंडार होता है। जिसे कुछ प्रयासों से बाहर निकाला जा सकता है।

ज्यों चकमक में आग अर्थात जिस प्रकार आग में रोशनी होती है उसी प्रकार युवा का व्यक्तित्व अपार ऊर्जा से परिपूर्ण होता है। उसका छोटा सा प्रयास भी समाज, राष्ट्र व स्वयं को प्रकाशित कर सकता है।

तेरा सांई तुझ में ही अर्थात आप का ईश्वर आपके अंदर विद्यमान हैं। ईश्वर अर्थात शक्ति। कहने का तात्पर्य आप के अंदर स्वयं असीम शक्ति विद्यमान है, आप जो चाहे वह कर सकते हैं।

जाग सके तो जाग अर्थात इसे अपने में ढूंड सकते हो तो ढूंड लो। ये आपके भीतर ही विद्यमान हैं।

कबीर दास जी का यह दोहा बहुत व्यापकता लिया हुआ है इसे युवाओं को बहुत गहराई से समझना चाहिये। यह आपके जीवन को बदल कर रख सकता है।

कभी सोचा है कि जब आप शक्तिशाली हैं, विवेकशील है, सामर्थ्यवान है, शक्ति का श्रोत है तो क्या कारण है कि जवाबदार आप को गंभीरता से नहीं लेते? वो इसलिए नहीं लेते क्योंकि आप उनकी नजरों में सिर्फ उनके विचारों की गठरी को आवागमन कराने वाली बैलगाड़ी मात्र हो।

शांत चित्त से विचार कीजिएगा कि आज जो विचार और लक्ष्य की गठरी आप लेकर चल रहे हैं, वह आपकी स्वयं की है या दूसरों की। बहुत ही आसान है यह जांच लेना की आप खुद के लिये प्रगतीशील है या दूसरे के एजेण्डे की बैलगाड़ी बने रहने के लिये। ये पांच बिंदू है

1. सर्व धर्म समभाव
2. सर्व समाज समभाव
3. सर्व वर्ग समभाव
4. सर्व जात समभाव
5. सर्व क्षेत्र समभाव

अब आप इन बिंदुओं को लेकर मन में आ रहे सकारात्मक और नकारात्मक विचारों के बारे में सोचिये की वह विचार आपके अध्ययन या अनुभवों पर आधारित हैं या दूसरे के द्वारा प्रस्तुत तर्कों व तथ्यों पर आधारित है। उत्तर आपको मिल जायेगा। सही दिशा में चलने का बोध हो जायेगा।

झूठा व्यवहार व भ्रष्टाचार इस देश के युवाओं का सबसे बड़ा दुश्मन है। इसके लिए जवाबदार वे नहीं जिन्होने आप की आंखों पर भावनाओं की पट्टी को बांध रखा है। इसकी वजह स्वयं आप है जिसने बेवजह अपने को पक्ष और विपक्ष के खेमें बांट लिया है। इस प्रवृत्ती के कारण आपका शासन के ऊपर से नियंत्रण हट गया है। 

वक्त है संभल जाईये, आप जीवन के प्रति जो संतुष्टि का भाव लिए हुए हैं असल में वह आने वाली हताशा का आगाज है। सामर्थ्यवान युवा बनना चाहते हो या फिर समर्थन की मशाल उठाकर चलने वाले गुलाम, फैसला आपको स्वयं करना है।
जय हिंद ....
राजेश बिस्सा
9753743000
लेखक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत स्वतंत्र विचारक हैं। युवाओं के बारे लगातार लिखते रहते हैं।
रायपुर दिनांक  23 मई 2020

Sunday, May 17, 2020

नफरत की भट्ठी के ईंधन हमेशा युवा ही रहे हैं - राजेश बिस्सा

नफरत की भट्ठी के ईंधन हमेशा युवा ही रहे हैं

प्रिय युवाओं,
सादर अभिवादन,

मैं देख रहा हूं की आज युवा बहुत बुझा बुझा सा नजर आ रहा है। ये हताशा ठीक नहीं आक्रमकता जरुरी है। उस आक्रमकता की दिशा राजनीतिक नहीं बल्कि स्वयं से जुड़े मुद्दों के लिए होना चाहिए। आक्रमकता का हमें अपने हितों व समस्याओं के ध्यानाकर्षण के लिये उपयोग करना चाहिए।

यह आक्रामकता हम में तभी आ पाएगी जब हम अवसर वादियों के संदेश वाहक की भूमिका को छोड़ देंगे। और अपने जीवन की खुशियों का आधार रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोटी, कपड़ा और मकान जैसी है जरूरी बातों के संदेश वाहक बन जाऐंगे।

आपको अब जनसंवाद के हर प्लेटफार्म से सिर्फ अपनी और अपनों की बात करने का संकल्प लेना होगा। राजनैतिक, नफरत फैलाती, एक दूसरे को छोटा आंकती व गैर जरुरी बातों का कैरियर बनना बंद करना होगा।

अगर आपने यह बंद नहीं किया तो अततः सिर्फ हताशा हाथ लगेगी। युवाओं में हताशा अर्थात एक पूरी पीढ़ी का हार जाना होता है। जबकि युवा प्रतीक होता है प्रतिकूल परिस्थितियों से नौका को बाहर निकाल कर लाने का। तूफान के सामने चट्टान बन खड़े हो जाने का। इस भावना को जीवित रखियेगा। संपूर्ण समाज आपको बहुत आशा भरी नजरों से देख रहा है।

चुनौती हमेशा प्रसन्नचित्त  स्फूर्तिवान युवा ही दे सकता है। हताश युवा कभी भी चुनौती नहीं बन सकता। अवसरवादी यही चाहते हैं कि उनके सामने कोई चुनौती ना हो। इसलिए वह कभी नहीं चाहेंगे कि आप हताशा से बाहर आयें। इतिहास गवाह है कि नफरत की भट्ठी के ईंधन हमेशा युवा ही रहे हैं। अवसर वादियों के एजेंडे का बोझ हमाल बनकर सदा युवा ही उठाते रहे हैं। 

वक्त आ गया है कि जवाबदारों को यह बात समझा दी जाये कि उनने अगर आपके जीवन को सच्चा व अच्छा करने के लिये ठोस कदम नहीं उठाये तो आपकी नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है।

जिस दिन आप व्यवस्था के जवाबदारों को यह संदेश देने में सफल हो जायेंगे की आप अब उसी के साथ खड़े होंगे जो आपकी बातों के प्रति गंभीर है। तो यकीन मानिये नफरत, दूसरे को नीचा दिखाने, भारत पाकिस्तान चीन का तुलनात्मक अध्ययन करने जैसे मुद्दों को आगे कर आपका ध्यान बांटने, आपका समर्थन लेने की उनकी रणनीति में भी सार्थक परिवर्तन आ जायेगा। अब वे रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी जरुरी बातें करने लगेंगे।
  
हमें जवाबदारों को मजबूर करना होगा है कि वे आपके लिये रोजगार, शिक्षा तथा स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था करें।  उस दिशा में गंभीरता से सोचना शुरू करें। अगर ये तीन बातें पूरी हो गयी तो रोटी कपड़ा और मकान की व्यवस्था करने में आप स्वयं ही सक्षम हो जायेंगे।

स्वामी विवेकानंद जी का यह संदेश "उठो जागो और जब तक आप अपने अंतिम ध्येय तक नहीं पहुंच जाते हो तब तक चैन मत लो" आज हर युवा को आत्मसात करने की जरुरत है। इससे निरंतर आगे बढ़ने की व परिस्थितियों से लड़ने की शक्ति मिलेगी।

व्यवस्थाएं हम से ही बनती हैं। हमारे कारण ही बिगड़ती हैं। हम ही उसके बिगड़े स्वरूप सुधार सकते हैं। इस बात को गांठ बांध लीजिए।

जय हिंद ....

राजेश बिस्सा
9753743000
लेखक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत स्वतंत्र विचारक हैं। युवाओं के बारे लगातार लिखते रहते हैं।
रायपुर दिनांक  16 मई 2020

Monday, May 11, 2020

युवाओं का काम संकीर्ताओं पर आत्म गौरव करना नहीं – राजेश बिस्सा


युवाओं का काम संकीर्णताओं पर आत्म गौरव करना नहीं – राजेश बिस्सा

प्रिय युवाओं
सादर वंदे


तुम नहीं कमजोर, मजबूर मत समझना।
आवाज कर बुलंद, युवाओं का काम धधकना

सशक्त युवा वह सैलाब है, जिसे रोका नहीं जा सकता है। अगर आप शसक्त नहीं है, तो इसका सीधा  मतलब है, आप मजबूर हैं। पराधीन हैं। दूसरे की दया पर निर्भर हैं।

क्या युवाओं का जीवन सिर्फ संकीर्णताओं पर आत्मगौरव महसूस करने से चल जायेगा? क्या जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, राष्ट्र, सीमाएं, परंपरा, संस्कृति, देशी, विदेशी ईत्यादि जैसे मुद्दों पर दिन दिन भर चर्चा करने, संदेशों को कॉपी पेस्ट कर आदान प्रदान करने मात्र से व्यवस्थित व सफल हो जायेगा? अगर नहीं, तो विचार कीजिये भागते समय के बीच आप कहां खड़े हैं? कहां जा रहे हैं? आपकी जीवन यात्रा कहीं इन्ही विषयों के मध्य खोती तो नहीं जा रही है?
  
युवाओं को अधिकार एवं कर्तव्य ये दो ऐसी महत्वपूर्ण शक्तियां प्राप्त है, जो उसे सामर्थ्यवान बनने का अवसर प्रदान करती है।

अधिकार - वह ताकत है जो संवैधानिक व्यवस्थाकानून व नियम कायदों से मिलती है।
कर्तव्य - वो दायित्व है जो हमें स्व प्रेरणानैतिक मूल्यों व कानून से प्राप्त होते है।  

यह दोनों एक दूसरे के पूरक है। अगर आपके पास अधिकार नहीं है तो आप कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकते। और अगर आप कर्तव्यों का पालन नहीं कर सकते तो राष्ट्र, समाज, परिवार तथा अपने को मजबूत नहीं कर सकते। 

मजबूर व हताश युवा कभी चुनौती नहीं बन सकता। यह बात व्यवस्था ने बहुत अच्छे तरीके से समझ ली है। इसलिये अब जवाबदार व्यवस्थाऐं हमारे संवैधानिक अधिकारों पर भी नियंत्रण के प्रयास में लग गयी हैं। 

हमें संवैधानिक रूप से छह मूल अधिकार प्राप्त हैं

1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18), 
2. स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19 से 22),
3. शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24),
4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28),
5. संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30)
6. संवैधानिक अधिकार (अनुच्छेद 32)

इनमें से जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकारतो वह अधिकार है, जिसे राष्ट्रीय आपातकाल में भी स्थगित नहीं किया जा सकता। आज हम देख रहे हैं कि डंके की चोट पर व्यवस्थाएं आपके अधिकारों पर अतिक्रमण करने के लिए आगे बढ़ चुकी है। आपके अधिकारों को कुचला जा रहा है। आप कर्तव्यों का पालन न कर पाए ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है। सतर्क हो जाइए। वर्ना जिंदगी भर घुटने टेके रहने होगा। हाथ फैलाये रखना होगा।

यह विसंगति सिर्फ इसलिये हावी हो रही है क्योंकि युवाओं ने व्यवस्था के प्रति अंधश्रद्धा पाल रखी है। मौन धारण कर रखा है। प्रश्न करना बंद कर दिया है। व्यवस्थायें आपको गंभीरता से लें इसके लिये जागरुक होना होगा। आपको संकल्पित होना होगा की अपने अधिकारों को कुचलने नहीं देंगे और कर्तव्यों के पालन से पीछे नहीं हटेंगे।

जय हिंद ...

राजेश बिस्सा
9753743000
लेखक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत स्वतंत्र विचारक हैं। युवाओं के बारे लगातार लिखते रहते हैं।
रायपुर दिनांक  11 मई 2020

Wednesday, May 6, 2020

युवा नफरत फैलाने का औजार नहींः राजेश बिस्सा


युवाओं के नाम खुला पत्र -     
युवा नफरत फैलाने का औजार नहीं
प्रिय युवाओं
सादर वंदे,

जीवन तुझे है बढ़ते रहना, जलकर होना राख नहीं
ऐ युवा तू अवसर वाद की, भट्टी का अंगार नहीं

युवाओं को अब स्पष्ट संदेश देना होगा कि युवा अवसरवाद की भट्टी में तपता लोहा नहीं है जिसे जैसे चाहा ढ़ाल लिया। युवा धर्म, संप्रदाय, जाति, भाषा क्षेत्र को लेकर नफरत फैलाने का औजार नहीं है जिसे  जब चाहा चला लिया। युवा झूठ को फैलाने वाला वायरस नहीं है जिसे फैला कर समाज को खतरे में डाल दिया।

अवसरवादियों को यह बात बहुत अच्छे ढंग से समझ में आ गई है कि नफरत की भट्ठी और अज्ञानता के अंधकार से जो वोट की ताकत निकलती है, वही सत्ता का मार्ग प्रशस्त करती है। यही कारण है कि वे युवाओं को किसी भी तरह भटकाव के रास्ते पर ले जाने का अवसर नहीं छोड़ते। युवाओं के दिल में नफरत का फैलाव कर जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों से उन्हे दूर रखने का प्रयास करते हैं।इसी कारण युवा राजसत्ता की प्राथमिकता में सबसे निचले पायदान पर खड़ा है।

अब अभिव्यक्ति ही एक ऐसी ताकत बची है जो युवाओं को मजबूती, सम्मान व रोजगार दे सकती है।  मजबूत समाज और राष्ट्र दे सकती है। राजसत्ता पर उनका नियंत्रण कायम करवा सकती है।

युवाओं के एक ग्रुप ने मुझसे ऑनलाइन वार्ता की। अच्छा लगा यह देखकर कि अंधकार से बाहर निकलने के लिए सूर्य की किरणों ने अपना जोर मारना शुरु कर दिया है।

एक युवा साथी ने बताया कि उनके परिवार की अर्थव्यवस्था पिताजी को रिटायरमेंट के बाद मिले रुपयों से किये गये फिक्स डिपॉजिट से चल रही है। मुझे यह बात ऐसी लगी की मानो बारूद के ढेर पर बैठा कोई व्यक्ति बोल रहा है कि मेरा जीवन सुरक्षित है।

जमा रकम पर बैंक की ब्याज दरें निरंतर कम होती जा रही है। महंगाई बढ़ रही है। रुपये का मूल्य लगातार कम होता जा रहा है। आने वाले समय में यह रकम ऊंठ के मुंह में जीरा समान होगी। इस त्रासद स्थिति के कारण कुछ आत्महत्या तो कुछ अपराध कर रहे होंगे।

एक साथ इतने युवाओं को समझने का अवसर मिला। तो लगा विशेषकर युवा पांच बातों को लेकर बेहद चिंतित व असमंजस में थे
पहला - घटते रोजगार के अवसरों से
दूसरा ठोस स्व-रोजगार नीति के आभाव से
तीसरा ग्रामीण व्यवस्था व किसानों की बदहाली से
चौथा - फैलते नफरत के वातावरण से
पांचवा समाज में फैल रहे झूठ से

मैंने युवाओं से पूछा कि आप इन बातों से बाहर निकलने के लिए आप क्या प्रयत्न कर रहे हैं? यकीन मानिए ऐसा लगा मानो युवाओं की बुद्धि को किसी ने हाईजैक कर लिया है। समाधान का कोई बिंदु वे शब्दांकित नहीं कर पा रहे थे। मन में एक ही विश्वास पाले हुए थे कि “कोई आयेगा जो उन्हें भंवर से बाहर निकाल कर ले जाएगा।“ बस इसी बात ने युवाओं की स्वतंत्र सोच व व्यक्तित्व को क्षति पहुंचाई है।

आप रोजगार को जीवन का प्रथम ध्येय बनाइए, ग्रामीण अर्थव्यवस्था किसान व किसानी के संवर्धन के लिये अच्छे सुझाव दीजिये और व्यवस्था को मजबूर कर दीजिये की वो उस दिशा में कदम उठाये। नफरत फैलाने वालों के साथ मत खड़ा होइये। समाज में फैलाये जा रहे झूठ के वाहक मत बनिये।

जब तक आप अपने को अभिव्यक्त नहीं करेंगे कि आप क्या चाह रहे हैं, तब तक कोई भी व्यवस्था गंभीरता से नहीं लेगी। आज सोशल मीडिया से अच्छा मंच अपने को अभिव्यक्त करने का दूसरा नहीं है। उस मंच का बेहतर उपयोग अपनी बात करने के लिये कीजिये। कॉपी-पेस्ट, मनगढ़ंत बातों वाली पोस्ट को नजर अंदाज कर अपनी चाहत व जरुरत की बातों को प्रवाहित कीजिये।

अब समझना होगा कि “नारों की मदहोशी में नाचना, युवाओं का काम नहीं और नारों की जय-घोष पर कदम-ताल करने में, युवाओं का सम्मान नहीं”

जय हिंद ...
राजेश बिस्सा
9753743000
लेखक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत स्वतंत्र विचारक हैं। युवाओं के बारे लगातार लिखते रहते हैं।
रायपुर दिनांक  06 मई 2020