ये कैसी जिंदगी...
ये कैसी जिंदगी...
रहने को छत नहीं
तन को वस्त्र नहीं
सूख चुकी आंतों से
मृदंग ध्वनी निकले
भूख को सहलाती
ये कैसी जिंदगी...
वज्राघाती कठिनाईयां
दम घोंटती हर पल
जीजीविशा ऐसी की
नहीं थमने दे जीवन
घिसट घिसट कटती
ये कैसी जिंदगी...
बार बार भरता
दर्द भरी लंबी सांसे
फिर भी इन आहों पर
कोई पसीजता नहीं
मतलबों से भरी
ये कैसी जिंदगी ...
गुलामी पसंद नहीं
शोषण से लड़ता नहीं
बोलता तू क्यों नहीं
निरउद्देश्य यह जीवन
मौन धरे काट रहा
ये कैसी जिंदगी...
राजेश बिस्सा
9753743000
लेखक राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत स्वतंत्र विचारक हैं।
युवाओं के बारे लगातार लिखते रहते हैं।
रायपुर दिनांक – 28 अप्रैल 2020
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